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Sunday 4 May 2014

जर्मन पेपर से संरक्षित हो रहीं दुर्लभ पांडुलिपियां


 रामचरित्र मानस, वायु पुराण, महाभारत, गीता और रघुवंश महाकाव्य आदि आदि। ये धार्मिक पुस्तकें सामान्य तौर पर सभी हिन्दू कर्मकांडियों के पास मिल जाएंगे। लेकिन गया के संग्रहालय में ये पुस्तकें हस्त लिखित है। जिस कारण दुर्लभ है। ये हस्त लिखित पुस्तकें कब से यहां पड़ी है इसकी जानकारी संग्रहालय में तत्काल उपलब्ध नहीं हो सका है। लेकिन इसे संरक्षित करने का काम किया गया है।

इस तरह की धार्मिक और गैर धार्मिक हस्त लिखित पुस्तकों की संख्या 90 है। इन पुस्तकों को जर्मन पेपर से कवर कर बाइंडिंग किया गया है। जिससे पुस्तक में लिखित अक्षर साफ-साफ नजर आते हैं। पुस्तकों की लिपी सामान्य तौर पर संस्कृत और नागरी लगती है। लेकिन यह सिर्फ खुले आंखों से देखने भर है। उन शब्दों को पढ़ने में कठिनाई होती है। जानकारों का कहना है कि ये शब्द संस्कृत और हिन्दी का मिश्रण है। जिसे किसने हस्त लिखित किया यह भी पता नहीं है।

वैसे तो गया संग्रहालय कुछ वर्ष पहले जेल रोड पर अपने मुख्य भवन में स्थानांतरित होकर आ गया है। लेकिन यहां दर्शनार्थियों की संख्या नगण्य है। कभी-कभी भूले भटके लोग इस संग्रहालय को देखने आ जाते हैं। वैसे इसका बाहरी भाग भव्य तो लगता है पर उदास है। कहीं से संग्रहालय होने का कोई चिह्न सामने से नजर नहीं आता। जिसके कारण कोई भी पुरातात्विक धरोहरों को देखने के लिए नहीं पहुंच पा रहे हैं। जबकि अदंर आने पर कई कमरों में भगवान बुद्ध से लेकर कई पुरातत्व की प्रतिमाएं सलीके से लगाई गई है। गया के बारे में कई जानकारियां दिए गए हैं। इन्हीं कमरों के एक आलमीरा में हस्त लिखित दुर्लभ पांडुलिपी को भी संजोने का काम किया गया है।

संग्रहालय के अधीक्षक डा. विनय कुमार बताते हैं कि जब उन्होंने योगदान दिया तो ये पांडुलिपियां यत्र-तत्र पड़ी थी। जिसे पटना के हेरिटेज कन्सोडियम के द्वारा बाइंडिंग कराने का काम किया गया है। इन दुर्लभ हस्त लिखित पांडुलिपी को जर्मनी में बने बांस के कागज के बीच में संजो कर रखा गया है। जिसकी उम्र लगभग 50 वर्ष है। उन्होंने बताया कि इस तरह की 90 हस्त लिखित पुस्तके तैयार की गई है। जो एक धरोहर के रूप में रखी जा रही है। उन्होंने कहा कि अब इन पांडुलिपियों के बारे में विशेष अध्ययन कराने का प्रयास किया जाएगा। इनकी लिपी और लेखन का काल का भी पता लगाया जाएगा। सभी पांडुलिपियों को आकार में ले आया गया है जो सुरक्षित है। अब केमिकल युक्त विदेशी कागजों पर दीमक या अन्य कीड़ा लगने का कोई सवाल नहीं है। यह सुरक्षित पांडुलिपियां संग्रहालय की है।

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